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Santhara Ritual: संथारा अनुष्ठान क्या होता है? जैन धर्म में यह क्यों माना जाता है इतना महत्वपूर्ण
May 4, 2025

Santhara: संथारा लेने की धार्मिक आज्ञा किसी गृहस्थ और मुनि को है। यह एक धार्मिक संकल्प है, जिसमें व्यक्ति अन्न और जल का त्याग करता है। जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है।

Santhara Ritual: जैन धर्म में संथारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। जैन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब कोई व्यक्ति या मुनि अपनी जिंदगी पूरी तरह जी लेता है और शरीर उसका साथ देना छोड़ देता है तो उस वक्त वो संथारा ले सकता है। यह अनुष्ठान जैन धर्म के अनुसार आत्म-शुद्धि और मोक्ष प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है। इस अनुष्ठान में व्यक्ति भोजन और पानी का त्याग करता है और ध्यान, प्रार्थना व आत्म-चिंतन में लीन रहता है। संथारा अनुष्ठान जैन साधुओं और श्रावकों (गृहस्थ) द्वारा किया जा सकता है।
जैन धर्म में मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति बुढ़ापे या लंबी में संथारा ले सकता है। हालांकि संथारा की इजाजत व्यक्ति को कोई धर्मगुरु ही दे सकते हैं। उनकी इजाजत के बाद ही व्यक्ति अन्न का त्याग करता है। संथारा अनुष्ठान के दौरान उस व्यक्ति के आसपास धर्मग्रंथ का पाठ किया जाता है और प्रवचन होता है। उस व्यक्ति को मिलने के लिए कई लोग आते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। जिस व्यक्ति ने संथारा लिया है उसकी मृत्यु को समाधि मृत्यु कहा जाता है। जैन समाज में इस प्रक्रिया को समाधि या सल्लेखना और श्वेतांबर में संथारा कहा जाता है। संथारा को धैर्यपूर्वक अंतिम समय तक जीवन को ससम्मान जीने की कला माना गया है और मनोवैज्ञानिक रुप से मृत्यु वरण करने का तरीका।
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